लोभी का लालच और भगवान का असली रूप
एक संत कथा सुना रहे थे - एक सज्जन का नाम था- दानचंद । गंगाजी से 12 किलोमीटर दूर उनका गांव था ।
दानचंद को भगवान ने संपन्नता तो दी थी, धन तो दिया था लेकिन लोभी इतने थे कि लोगों ने व्यंग्य में ही उनका नाम दानचंद रख दिया था ।
कभी कोई पुण्य कार्य नहीं किया । कहते कि खर्च होगा ।
तब पत्नी ने कहा - कि गंगाजी नहा आओ, 12 किलोमीटर दूर है । इसमें क्या खर्च हो रहा है, चले जाओ ।
सवारी की भी जरूरत नहीं है। पैदल-पैदल चले जाओ, पर गंगाजी तो नहा लो ।
ठीक है! बहुत कहा, तो सोचा- जीवन में एक बार तो गंगा जी नहा लें; क्या हर्ज है । 12 किलोमीटर दूर है , गंगाजी ; ज्यादा दूर नहीं है ।
पैदल-पैदल गया । खर्चा कौन करे ; सवाल ही नहीं ।
अब गंगाजी किनारे पहुंचकर सोचा, घाट पर नहीं नहाऐं । वहां पंडा लोग रहते हैं । पंडा कहेंगे - दान करो दान करो ।
तो मुर्दा घाट पर गए । अब मुर्दा घाट तो खाली रहता है, कभी-कभी । कभी-कभी दुनिया में, अपने घर में कोई सीट खाली करता है; तो मुर्दा घाट भरता है, बाकी तो खाली ही रहता है ।
सोचा- यह ठीक है; न पंडा का झंझट, न दान का, न पुण्य का ।
गए, कपड़े उतारे, इधर- उधर देखा, कोई नहीं । तो सोचा डुबकी लगा लें । सो जैसे ही प्रवेश किया, डुबकी लगाई ।
भगवान को हंसी आयी कि, इतना लोभी आदमी हमने अभी तक नहीं देखा ।
तब भगवान ने सोचा कि- चलो आज हम इसको छकाते हैं ।
सो दानचंद ने देखा, इधर-उधर कोई नहीं था पर गंगा जी में जैसे ही डुबकी लगा कर बाहर निकले, वैसे ही पंडा के रूप में भगवान उपस्थित । यजमान की जय हो ! यजमान की जय हो !
दानचंद बोले -- तुम कौन?
भगवान ने कहा कि -- हम पंडा हैं, संतोषी ब्राह्मण हैं । इसी घाट पर पड़े रहते हैं ।
अब दानचंद बोले-- मुर्दा घाट भी नहीं छोड़ा।
पंडाजी बोले -- हम संतोषी ब्राह्मण हैं ओर घाट पर तो और पंडा लोग रहते हैं । हम तो यहीं पड़े रहते हैं और हमारे लिए कोई ना कोई आप जैसा यजमान आ जाता है ।
एक-एक वर्ष का खाने-पीने का इंतजाम कर देता है ।
दानचंद बोले -- एक-एक वर्ष का इंतजाम । हम तो 1 दिन का भी नहीं कर सकते, एक समय का भी नहीं कर सकते ।
पंडित जी बोले - कोई जबरदस्ती थोड़े हैं,आपकी जैसी श्रद्धा हो । कुछ तो कुछ, कुछ ना कुछ तो देना पड़ेगा ।
दानचंद बोले -- हमने आज तक नहीं दिया ।
पंडाजी बोले -- आज तो देना पड़ेगा ।
तो दानचंद सोचे , क्या करें -- कुछ विचार किया ओर बोले उधार दे रहे हैं ।
पंडा जी -- उधार !!!!
दानचंद -- हां ।
पंडा जी पूछे --- कितना ???
दानचंद बोले ---- बस एक धैला !! ।
(उन दिनों चलता था एक धैला मतलब एक पैसा )
भगवान ने कहा चलो दिया तो सही । संकल्प करा लिया, एक धैला उधार लेकर |
12 किलोमीटर गया - नहाया , फिर वापस - 12 किलोमीटर पैदल चलकर आया ।
शाम होने को आई - थका हुआ, दानचंद; बेचारा घर में सोने जा रहा था ।
तब तक आवाज आई -- यजमान की जय हो !!
दानचंद ने कहा -- देखो कौन है ।
पत्नी गई, देखा-- आई और बोली -- किसी पंडा से कुछ देने के लिए कह आए थे क्या ।
दान चंद जी बोले -- हां कहा था, पूछा --आ गए
पत्नी --- हां आ गए
दानचंद -- कहां है ।
बाहर ही हैं
दानचंद बोले -- आ गया वो !!
दानचंद बोले -- कहदो कि अभी दानचंद बीमार हैं, दो-चार दिन बाद आना ।
पत्नी (दरवाजे के पास गई कहा कि) -- अभी तबीयत खराब हो गई
पंडाजी पूरे गांव में कहते हैं कि - दानचंद चले गए ! दानचंद चले गए !
अच्छा ! लोग सचमुच इकट्ठे हो गये।
अब भगवान को भी मन में हंसी आये । ऐसा जिद्दी आदमी स्वास रोके पड़ा ।
लोगों ने उसे मुर्दा समझकर उठाया ।
अब उसकी पत्नी रोये और वह सही में रोये और बोले ---ये मरे नहीं हैं; मरे नही हैं।
और गांव वाले कहते जाने वाला तो गया, ये तो तुम्हारा मोह है ।
वो (पत्नी ) कहे कि नहीं मरे ।
गाँव वाले बोलें -- गये वो तो ।
वह बेचारी रोती रही । कौन सुने समझाये ।
दानचंद को उठा लिया, बांध लिया और देखो वह (दानचंद) भी बन्ध गया ।
भगवान ने कहा कि, हद हो गई! ऐसा आदमी हमने नहीं देखा ।
भगवान को लगा कि सब हमसे हार जाते हैं, आज हम हार गए इससे ।
ले गए, चिता पर रख दिया । अग्नी लगने वाली थी ।
भगवान ने सोचा -- मर जाएगा लेकिन देगा नहीं कुछ ।
तब भगवान ने कहा कि, यजमान के कानों में हम कुछ मंत्र बोलेंगे ।
सभी बोले -- हां हां ठीक है।
सो भगवान ने कान में कहा
।। आया हूं बैकुंठ से तुम हित नाता जोड़ ।।
भगवान ने कहा कि हम हार गए, हम भगवान हैं, बैकुंठ से आए हैं । तुम से नाता हमने जोड़ा।
सो पंडाजी ने जो कहा कि, आया हूं बैकुंठ से ; तुम हित नाता जोड़ ।
तो दानचंद ने सोचा ये तो भगवान है।
सो आंख खोली और जो आंख खोली तो वही पंडा; और जो पंडा को देखा तो फिर आंख बंद कर ली ।
भगवान ने कहा कि, हम तुमसे कुछ नहीं लेंगे। मांग ले ओ
।। मांग ले हो वरदान कछु ।।
तुम ही हमसे कुछ मांग लो । तो दान चंद क्या बोला, बोला धैला दीजिए छोड़ । बस वही धैला छोड़ दो और कुछ नहीं चाहिए ।
अब बोलो , ये लोभ की अति, ओर वो भी इतनी अति ।
देखो सहस्त्रबाहु के हजार भुजाएं हैं । सहस्त्रबाहु, हजार भुजाएं ! अब परशुराम जी ने फरसे से, उसके हाथ काटे ।
और अब यहां फरसा क्या है --
।। दान परस बुद्धि, शक्ति प्रचन्डा ।।
दान (फरसा)ही शक्ति प्रचण्डा है, और हजार भुजाओं से केवल अपने ए�
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