Mythological Story - Krishna Ji ki Story (Mera Sawariya)
बाबा कहने लगे -- सभी कुछ न कुछ देते हैं पर वृद्धा तो वह देती है, जो कोई ओर नहीं देता है, कम से कम वह गाली तो देती है तो हम गाली खाने चले जाते हैं।
माधवदास जी ने क्या किया --
वह कपड़े का पोता लेकर आए। उसको जल से धोया, कीचड़, मिट्टी से सना हुआ था, उसको पवित्र किया, साफ-सुथरा किया, निर्मल बनाया और निर्मल बनाकर, धोकर उसे धृत में डाल दिया। बत्ती बनाई, दिया जलाया। मंदिर में प्रकाश हो गया।
वह पोता भी कहता था -
और क्या किया ----
और अब दिया जलाया ।
ऐसे ही प्रतिदिन श्री माधव दास जी, नित्य शाम को समुद्र किनारे घूमने जाते हैं। अच्छा 'भगवान श्रीकृष्ण भी बड़े विलक्षण' हैं। देखो उनका सख्यभाव -- सखा बनकर श्यामसुंदर प्रकट हो जाते हैं और माधवदास जी से बातें करते हैं। एक दिन भगवान श्री कृष्ण आए, माधव दास जी ने देखा -- भगवान तो बड़े उदास, बहुत उदास बैठे थे।
माधवदासजी ने देखा पूछा --- क्या हुआ, उदास क्यों हो ?
श्री कृष्ण जी बोले -- कुछ नहीं।
माधव दास जी बोले -- नहीं नहीं कुछ तो हुआ है, बताओ क्या बात है ?
श्री कृष्ण जी बोले -- क्या बताएं ?
माधव दास जी बोले -- नहीं नहीं , बताओ बताओ ।
भगवान श्री कृष्ण जी बोले कि -- एक बात है ।
माधव दास जी बोले -- क्या ?
श्री कृष्ण जी बोले -- जब से वृंदावन छोड़ा है और जब से यहां जगन्नाथपुरी आए तब से चोरी करने को नहीं मिली।
माधव दास जी बोले - क्या चोरी !अरे प्रभु ये बचपन की आदतें हैं, छोड़ो इन्हे। अब तो यहां ये सब करना शोभा नहीं देता।
कृष्ण भगवान जी बोले -- वो तो ठीक है पर जिसकी जो आदत पड़ी हो, तो उसके बिना थोड़ी न रहा जाता है।
माधवदास जी ने बहुत कहा पर भगवान नहीं माने।
श्री कृष्ण जी बोले - नहीं !! चोरी तो करनी पड़ेगी तब ही मन मानेगा।
तो माधवदासजी बोले -- जब इतनी आदत पड़ी है तो कर ही लो चोरी।
श्री कृष्ण जी बोले -- कर कैसे लें, कोई साथी ही नहीं है।वृंदावन में तो तमाम सखा थे।अब यहां कोई सखा ही नहीं है। एक तुम ही हो।
माधवराव दास जी बोले -- महाराज हम !
श्री कृष्ण जी बोले -- हां! चलो
माधव दास जी बोले --कहाँ ?
श्री कृष्ण जी बोले -- चोरी करने चलो।
माधव दास जी बोले -- महाराज ! हम तो जिंदगी भर भजन करते रहे। हमें कोई चोरी करनी थोड़ी आती है, जो चोरी करें।
भगवान ने कहा -- तुम मन बनाओ, चोरी करना तो हम सिखा देंगे ।
माधव दास जी बोले -- अच्छा !!
श्री कृष्ण जी बोले -- हां। और चोरी करने में तो थोड़ी फूर्ती रखनी चाहिए बस और क्या। अब भगवान ने समझाया। माधवदास जी मान गए कि चलो, तुम्हारे साथ चोरी करेंगे ।
माधवदासजी ने पूछा -- चलना कहां है, यह बताओ ?
भगवान ने कहा -- जगन्नाथपुरी के राजा के बगीचे में बड़े सुंदर कटहल के फल लगे हैं और यह भेजते ही नहीं है हमारे लिए।
माधवदास जी बोले -- तो चोरी करने की क्या जरूरत है ? राजा जी तो हमारे शिष्य हैं, कल हम जाकर उनसे कहेंगे और आपके लिए कटहल ले आएंगे।
भगवान जी बोले --- नहीं ऐसे नहीं, मजा तो चुराने में ही आता है।
माधवदासजी कहने लगे -- ऐसी बात है तो ठीक है, चलो।
अब माधवदासजी और भगवानजी दोनों गये राजा के बगीचे में।
अब भगवानजी माधवदासजी को चोरी करने का तरीका बताने लगे और कहने लगे -- धीरे धीरे बोलना।
महात्मा जी---- ठीक है।
तो माधवदासजी को तो पूर्व का इस तरीके का कोई अभ्यास ही नहीं था। तो जैसे ही दोनों एक कटहल के पेड़ के पास पहुंचे तो।
भगवान जी बोले --- ऊपर चढ़ जाओ, ऊपर। तुम ऊपर से कटहल गिराना, नीचे हम झेल लेंगे।
अब माधवदासजी जोर से बोलने लगे -- कन्हैया किस पेड़ पर चढ़े ? इस पेड़ पर चढ़ें या उस पेड़ पर ?
अब जब माधवदास जी ने ऐसे जोर से बोलै तो बगीचे के माली ने सुन लिया और बोला -- मैं बताता हूं किस पेड़ पर चढ़े अभी आया।
अब जब माली ने सुना भगवानजी ने तो माधवदासजी को छुपाकर ले गये।
बोलने लगे -- तुम्हें पहले ही कहा था, धीरे धीरे बोलना चाहिए चोरी करते में, इतना तेज़ थोड़ी बोलते हैं।
अच्छा -- ठीक है ।
अब दोबारा गए चोरी करने। जब माली जाकर सो गया था।
भगवान बोले -- इस पेड़ पर नहीं उस पेड़ पर चढ़ो- चढ़ो । माधव दास जी चढ़ गये।
भगवान बोले -- ऊपर से कटहल गिराओ।
अब महात्मा जी ऊपर तो चढ़ गये।
भगवान ने कहा -- गिराओ , गिराओ।
अब ये बोले -- ये वाला कटहल गिराए कि ये वाला। बड़ी जोर- जोर से बोले।
और जो कहा ये वाला कटहल गिराओ तो। तो माली फिर डंडा लेकर दोड़ा। मैं अभी बताता हूँ -- कौन सा कटहल गिराना है, और वह डंडा लेकर दौड़ा ।
श्रीकृष्ण तो बड़े कोतूकी।अंतर्ध्यान हो गए। बेचारे माधव दास जी उतर रहे थे पेड़ से, कटहल गिरा दिया था।अब महात्माओं के तो कपड़े और रहन सहन बड़े ही अजीब होते हैं। तो कभी वृक्ष में उलझ जांए कभी इधर फंसे तो कभी उधर फंसे ।अब जैसे ही उतरे सो पकड़ लिए गए । सो माली ने रात को ही उनको अंधेरे में दो डंडे लगाये और हाथ बांध दिए ।
माली बोले - बंधे रहो यहीं पर , सवेरे राजा के पास ले चलेंगे।
अब माधव दास जी इधर-उधर देखें।
तो माली ने कहा -- इधर उधर क्या देख रहे हो ??
महात्मा जी बोले -- कुछ नहीं और मन में सोचें कि वह दूसरे कहां गए, जो हमें लेकर आये थे यहाँ।अब हमको तो फंसा दिया, खुद का पता नहीं है। रात भर बंधे रहे।
सवेरे, माली ने कहा -- चलो !! राजा साहब के पास।
सो हाथ बंधे माधव दास जी बोले -- चलो।
रास्ते में राजा साहब मिले।
राजा साहब घूमने आए तो उन्होंने देखा कि हमारे गुरुजी को माली क्यों बांधा हुआ है। तो छड़ी लेकर माली को मारने दौड़े।
राजा बोले -- इनको क्यों बांधा ( माधव दास जी को )?
माधव दास जी बोले --- इसको कुछ मत कहो।
राजा बोले -- क्यों ??
माधव दास जी बोले -- अब ऐसे बंधने के काम करेंगे तो बंधेंगे ही।
राजा ने पूछा -- तो आपने क्या किया है ऐसा ?
माधव दास जी बोले --- चोरी
राजा बोले -- आपने चोरी ???
माधव दास जी बोले --- हां !
राजा बोले --- कैसे ?
माधव दास जी बोले --- अब कुसंग में पढ़कर सब करना पड़ता है।
राजा बोले -- अरे भाई !! किसका कुसंग ?
माधव दास जी बोले --- अब घर में बताएंगे ये।
राजा साहब उनको घर लेकर गए। माधव दास जी ने स्नान किया, बैठे। राजा साहब भी बैठे, माधव दास जी ने पूरी कहानी सुनाई। वह कन्हैया, वो बिना चोरी किए हुए रह ही नहीं पाते हैं।वृंदावन से यहाँ आ गये हैं।
कहते हैं -- चोरी करने को मिली नहीं, मजा नहीं आ रहा है। सखा कोई नहीं है, तो कोई नहीं सखा हम ही मिले उन्हें। तो उन्होंने हमको ही कहा कि तुम चलो और वो माली डंडा लेकर आया और खुद तो उड़ गए हम पिटते रहे, बेकार में।
अब राजा ने सुना। राजा भक्त हृदय। नेत्र सजल हो गए। रोमांचक वातावरण हो गया, और उसने माधव दास जी की बात सुनकर अपना पूरा बगीचा ही श्री जगन्नाथजी के नाम लिख दिया।
भक्तजन कहते हैं कि -- आज भी वह बगीचा श्री जगन्नाथजी के नाम है।
तो भगवान ऐसे विलक्षण है कि सारे नियम एक तरफ रखकर उन्हें चोरी करने में ही मजा आता है। शाम को माधव दास जी वह लिखापढ़ी का कागज लेकर आए। समुद्र किनारे से भगवान फिर प्रकट और भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुरा कर बोले --- और संत जी ! रात कैसी कटी ?
हमने तो तुमसे पहले ही कहा था की फुर्ति रखनी चाहिए, तुम तो ऐसे उतर रहे थे पेड़ पर से जैसे कि कहीं कुछ हुआ ही ना हो और बड़े आराम आराम से ऐसे ऐसे उतर रहे थे तो ऐसे में माली पकडेगा नहीं तो क्या करेगा
माधव दास जी बोले -- हम तो पिटे और बंधे रहे और आप तो अंतर्ध्यान हो कर आ गए। लेकिन कुछ मिला ?? कटहल तक नहीं ला पाए। एक कटहल तक नहीं लेकर आए और हम देखो, पूरा बगीचा आपके नाम लिखाकर लाए हैं। अब बोलो
भगवान की इन लीलाओं में प्रेम , केवल प्रेम है। अब इस प्रेम भरी लीला को हृदय से देखें।अगर दिमाग से देखेंगे तो तर्क- वितर्क उठेंगे, पर यह प्रेम में सहजता से भगवान को हार जाने में भी उतना ही आनंद है और जीत जाने में भी उतना आनंद, वे सदा प्रसन्न रहते हैं।
अच्छा ! सबसे बड़ी विचित्र बात तो यह है कि भगवान श्री कृष्ण के जीवन में इतना उतार-चढ़ाव आया। कहीं जन्म हुआ, कहीं जन्मोत्सव। मथुरा से गोकुल गए, जेल में जन्मे लेकिन एक अद्भुत बात --ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी श्री कृष्ण भगवान सदा बंसी बजाते रहते हैं। जो हरदम चैन की बंसी बजाते रहें। ऐसी श्रीकृष्ण की लीला है, बड़ी आनंददायी प्रेम भरी लीला है।
और इसीलिए भक्तलोग कहते हैं ----
रामजी की लीला और कथा के कारण हम मर्यादित हों अर्थात धर्म से जुड़ रहें और श्रीकृष्ण की कथा सुनकर प्रेम के रंग में रंगे और अपने जीवन को सार्थक सफल बनायें।
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.